परिचय
बिजनेस की दुनिया में सफल लोगों की कहानियां हमें सिखाती हैं कि मेहनत, लगन और सही रणनीतियां किसी भी चुनौती को पार कर सकती हैं। सुनील मित्तल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और दूरदर्शिता से भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। यह कहानी न केवल एक सफल बिजनेसमैन बनने की है, बल्कि उस संघर्ष और जुनून की भी है जिसने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया।
प्रारंभिक जीवन और पहला कदम
सुनील मित्तल का जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ, लेकिन उन्होंने पॉलिटिक्स की जगह बिजनेस को अपना करियर बनाया। 18 साल की उम्र में उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद साइकिल पार्ट्स बेचने का बिजनेस शुरू किया। शुरुआती दिनों में उनके पास ना तो बाजार का अनुभव था और ना ही प्रतिस्पर्धा का सही ज्ञान। धीरे-धीरे उन्होंने बिजनेस की बारीकियों को समझा, लेकिन इस काम में सीमित मुनाफे और विकास के कम अवसरों के कारण उन्होंने इसे बंद कर दिया।
नई शुरुआत और जनरेटर बिजनेस
1980 में उन्होंने जापानी कंपनी Suzuki के साथ पार्टनरशिप कर पोर्टेबल जनरेटर का बिजनेस शुरू किया। उनकी शुरुआती रणनीति में स्ट्रीट वेंडर्स को जनरेटर बेचना था, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी रणनीति बदली और छोटे ऑफिसेज व दुकानों पर ध्यान केंद्रित किया। इससे उनकी कंपनी को सफलता तो मिली, लेकिन सरकार के नए आयात प्रतिबंधों ने उनका पूरा कारोबार बंद करवा दिया।
टेलीकॉम में कदम और पहली सफलता
ताइवान की यात्रा के दौरान उन्होंने पुश-बटन टेलीफोन देखा और इसे भारत में लाने का विचार किया। 1984 में उन्होंने Kingtel नाम की कंपनी से पुश-बटन टेलीफोन इंपोर्ट कर भारत में असेंबल करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत की और 1990 तक फैक्स मशीन, कॉर्डलेस फोन और अन्य टेलीकॉम उपकरण बनाने लगे। उनका ब्रांड Beetel 90 के दशक में भारतीय घरों में काफी लोकप्रिय हुआ।
मोबाइल नेटवर्क की ओर कदम
1992 में भारत सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को मोबाइल नेटवर्क लाइसेंस देने की घोषणा की। सुनील मित्तल ने फ्रांस की टेलीकॉम कंपनी Vivendi के साथ साझेदारी कर यह लाइसेंस प्राप्त किया। 1995 में उन्होंने भारती सेल्यूलर लिमिटेड की स्थापना की, जो आगे चलकर Airtel के नाम से जानी गई।
जियो के आने से चुनौतियां और सफलता
2016 में जियो की मुफ्त सेवाओं ने टेलीकॉम इंडस्ट्री में तहलका मचा दिया। कई कंपनियां बंद हो गईं, लेकिन सुनील मित्तल ने इस चुनौती का सामना करते हुए अपनी रणनीतियां बदलीं। उन्होंने स्पेक्ट्रम का अधिग्रहण किया, 4G कवरेज बढ़ाई और नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड किया।
अंतर्राष्ट्रीय विस्तार और सामाजिक योगदान
2010 में उन्होंने अफ्रीका में एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी के ऑपरेशंस को अधिग्रहित किया। सुनील मित्तल का मानना है कि एक जिम्मेदार बिजनेसमैन को समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। इसी सोच के साथ उन्होंने 2000 में भारती फाउंडेशन की स्थापना की, जो ग्रामीण भारत में शिक्षा को बढ़ावा देती है।
प्रेरणा का स्रोत
सुनील मित्तल की यह यात्रा हमें सिखाती है कि असफलताएं सफलता की सीढ़ी होती हैं। उनका संघर्ष, दूरदर्शिता और चुनौतियों को अवसरों में बदलने की कला हर किसी को प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष
सुनील मित्तल का जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि आप में जुनून और मेहनत करने की इच्छा हो, तो कोई भी बाधा आपको सफलता पाने से रोक नहीं सकती। उनकी कहानी भारतीय युवाओं के लिए एक मिसाल है कि अगर सपने बड़े हों और हौसला मजबूत हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं।